Tuesday, November 10, 2020

 कलाकार और कुछ भी नहीं बस खुद एक कला है

''I was created to create"


बहुत सी राहो में चलते चलते अचानक एक दिन पैर ठिठक कर रुक गए, समझ नहीं आया की हुआ क्या था? और फिर याद आया की मैं तो एक कलाकार हूँ और कलाकारों की ज़िंदगी भी ख़ूब होती है क्यूँकि उनकी ज़िंदगी उनकी होती ही नहीं!!

वो एहसासों के परों पर उड़ते है और दर्द की ज़मीन पर चलते है। उनकी आँखे सड़कों को देखती नहीं, वो बस निशानो को खोजती है जो किसी को दिखते नहीं!!

कभी किसी पेड़ की शाख़ से लटकी मोहब्बत की ख़ुशबू उन्हें छू जाती है, तो कभी किसी दीवार पर रगड़ी कमर की गर्मी उन्हें जला जाती है, रास्तों पर घिसे पड़े कदमों के निशानो में किसी के पसीने की महक रुला जाती है,तो कभी किसी झुग्गी के बाहर भीगी और लुटी आबरू ज़र्रा ज़र्रा काट के चली जाती है!!

कभी कूड़े के ढेरों पर जले पड़े इश्क़ के निशानो से भरे खूनी खत,अपनी तड़प सुना जाते है तो कभी उम्र की आख़री दहलीज़ पर टूटे अक़्स अपने राज़ बता जाते है, अक्सर रेल की टूटी पटरियों पर ज़िंदगी ज़ार ज़ार और बिखरी मिला करती है, मगर अफ़सोस के खिलखिलाते और महकते अहसास बहुत कम ही मिलते है!!

महसूस किया कि जो भी हो रुकना भी एक कला है जो केवल कलाकार ही जनता है, क्यूँकि जो कुछ भी हो पर कलाकार इंसान नहीं होते!!

सच ही है की कलाकार इंसान नहीं होते, कलाकार पहचान भी नहीं होते, वो बस रंग होते है कभी कलम की स्याही के, तो कभी कूँची में लिपटे तेल के रंगो में सने, कभी किसी के चेहरे के भावो में झलकते है, तो कभी किसी के पैरो की थपक में थिरकते है, कलाकार मौसम का अहसास होते है, कभी सावन की नमी, कभी आषाढ़ की गर्मी तो कभी ठिठुरन का अहसास होते है, कलाकार खुद कुछ नहीं होते और ना ही पैदा होते।

कलाकार और कुछ नहीं बस खुद कला होते है जिन्हें ज़िंदगी ने रचा है, लिखा है, कहा है और निराकार से साकार किया है, कलाकार ज़िंदगी को ज़िंदगी का तोहफ़ा है जिसे खुद ज़िंदगी ने बनाया और जिया है और कलाकार ज़िंदगी की प्यास है जिसे खुद ज़िंदगी ने हर पल हर लम्हा खुल के एक एक घूँट जिया और नीर बनके खुद ही पिया है।

कलाकार और कुछ भी नहीं बस खुद एक कला है जिसे ज़िंदगी ने खुद पैदा किया और हर पल खुल के जिया है!!

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