तीसरा रास्ता
जब भी अचानक से हम उससे मिलते हैं जिसके खो जाने का भय हम बर्दाश्त नहीं कर पाते ऐसे अनेक से क्षण हमें गहरे से हिला देते है असतित्व की गहराइयों तक हम झिल्ला उठते है क्युकी एक अनकहा सा पहलू हमारे दरवाजे में दस्तक दे देता है और जिसका हम कुछ नहीं कर पाते है, बस या तो उसके खत्म होने का इंतज़ार करते हैं या फिर बगावत करने पे उतर आते है , क्या हुमने सोचा कोई तीसरा मार्ग॥ क्या कोई तीसरा मार्ग है भी?
या हम हमेशा ऐसे ही हिलते डुलते अपने जीवन की चकरी बनाने में उलझे रहेंगे॥ क्या हम वो तीसरा रास्ता नहीं देखना चाहते
शायद देखना क्या है कैसे देखा जाए और क्यू देखा जाए , इन सारे सवालों के जवाब हमें कभी मिले नहीं या हमने कभी जान ने की कोशिश भी नहीं की , ज़िंदगी में इतने उलझे हुए कि हम अपनी चाहतों को ही भूल गए॥ अजीब सी बात है यह॥
लिखना, गहरे से लिखना और इतना लिखना की अंदर के सारे डर, सारा खोखलापन और वो तीसरा रास्ता बाहर आजाये जिसको हम ढूंढ रहे है….
रमेश ने आज फिर एक पन्ना लिया और चार पन्ने लिख कर फेक दिए हवा में, उसकी कहानी का कोई मोड ही नहीं है,हिलती डुलती बिखरी बिखरी सी कहानी, हूबहू उसकी ज़िंदगी की जैसी.. शब्दों की भी माया है एक समय तो रमेश कब ना जाने पन्नों में पन्नों भारता था, और अब हर चार पंक्ति बाद उसको कुछ भी समझ नहीं आता..
क्या एक यह बहुत बड़ी दुविधा नहीं है , जो कल तक भरपूर था आज वो आसमान खाली है, अब एक बार फिर से रमेश ने कलम उठाई और सोचा आर या पार
शब्दों की भी यह दुविधा है जब भी आते है तो फूट फूट के आते है और वरना तो बस रुके रुके से बहके बहके से खामोश सिमटते हुए अपनी सारी आभा को खो देते है..
रमेश को बचपन के वो दिन याद आ गए जब वो कक्षा में एक कोना ढूँढता और लगातार काले मोतियों को सफेद आकाश में बिखेर देता, गहरी शांति और तस्सलि के पल...आज भी यह प्रयास जारी है लेकिन सबकुछ करना और कुछ नहीं करने के बीच का वो तीसरा रास्ता रमेश को नहीं मिला....
जब रमेश वापस देखने के लिए अपनी बचपन की उन दिनों की यादों की ओर मुड़ा,
तो उसने एक नया दृष्टिकोण प्राप्त किया। वह सोचने लगा कि शायद तीसरा रास्ता वास्तव में उसे उसके अंतर की गहराइयों में ले जा सकता है। शब्दों के वास्ते,
वह सोचा कि यदि वह अपने आत्मसंयम को छोड़ देता है और बिना सोचे समझे लिखने की आजादी स्वीकार करता है,
तो शायद उसे वह तीसरा रास्ता मिल सकता है जिसे वह ढूंढ रहा है।
उस दिन से रमेश ने अपनी कलम उठाई और इसके साथ अपनी सारी संकल्पनाओं और स्वप्नों को लिखने का साहस दिखाया। वह लिखता था,
बिना सोचे समझे और सीमित नहीं होते हुए। शब्द उसकी कलम के बाहर से फूटने लगे और अपने अंतरंग विचारों को प्रकट करने लगे। कुछ शब्दों ने उसे आश्चर्यचकित किया,
कुछ ने उसे खुशी दी,
और कुछ ने उसे अपने विचारों को संगठित करने की प्रेरणा दी।
रमेश की कलम उसे नए दरवाजे पर ले गई,
जहां वह पहले कभी नहीं गया था। यह दरवाजा उसे अपने आंतरिक उत्थान की ओर ले गया,
उसे अपनी सत्यता और सामर्थ्य में नई दृष्टि दिखाई दी। वह जान गया कि उसके अंदर एक अद्वितीय तीसरा रास्ता है,
जो उसे आगे बढ़ने की साहसिकता देता है।
रमेश ने लिखना शुरू कर दिया और अपनी कलम के माध्यम से एक अनजाने दुनिया के बाहर अपने आंतरिक विश्व को प्रकट किया। वह अद्वितीयता के साथ लिखता था,
बिना सोचे समझे और अपनी स्वतंत्रता की प्रतिष्ठा स्थापित करता था। उसके लिखे शब्द उसके और उसके पाठकों के बीच एक नया संबंध बनाते थे,
जो अपने अस्तित्व को स्वीकार करता था और नए सफर की ओर ले जाता था।
इस प्रकार,
रमेश ने नये तीसरे रास्ते का आविष्कार किया जो उसे उसकी अंतरिक उत्थान की ओर ले जा रहा था। वह जान गया कि सच्ची राह प्राकृतिक रूप से अपने अंदर ही मौजूद होती है और उसे खोजने के लिए केवल अपने आंतरिक स्वतंत्रता को स्वीकार करना होगा।